Wednesday, August 31, 2011
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पर्वो का उद्देश्य |
खुशिया ईद मुबारख की हो अथवा गणपति पूजा की दोनों पर्वो के उल्लास में आज पूरा देश डूबा हुआ है ! हर पर्व और त्यौहार हमारे लिए जिस आनंद का अवसर प्रदान करते हैं उसमे समाज की सभी विषमताए समाप्त सी हो जाती है ! अमीर गरीब बाल बर्द्ध स्त्री पुरुष सभी बिना किसी भेद भाव के उस अवसर का पूरा आनंद उठाते हैं इन त्योहारों की ख़ुशी में संसाधनों का कोई महत्व नहीं रह जाता हैं धन और साधन की सीमए सिकुड़ जाती हैं और आत्मीयता के खुले आकाश के नीचे हर कोई उन्मुक्त आनंद का भागीदार बन जाता है कदाचित हम अपने मन की खुलती ग्रंथियों को एक झटके से अलग कर सके और केवल आनंद के हर अवसर पर जगत पंथ भाषा और छेत्रिये संकीर्णता से उपर उठ कर एकात्मक हो सकें ईद के सेबेयों की मिठास और गणपति पूजा के मोदकों की मादकता को अपने नित्य के जीवन में स्थान दे सके तो कितना अच्छा हो
Wednesday, July 6, 2011
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गंगा पर बाँध या धारी देवी मंदिर - किसका है पलड़ा भारी? |
हिंदू धर्म में विवादित प्रश्नों का समाधान जिस एक ग्रन्थ के द्वारा प्राप्त किया जाता है उसका नाम है निर्णय सिंधु. इसमें मंदिर, मूर्ति, पूजा और पूज्य स्थान के बारे में विस्तृत चर्चा है. हर प्रश्न का उत्तर है, जिसमें स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि जहाँ प्रतिमा स्थापित होती है वह स्थान पूज्य हो जाता है.इसके अलावा स्वयं भू स्थान जिनके प्रति आस्था लोक मानस में परंपरा से आई हो वो स्थान अचल माने जाते हैं और वहाँ भूमि ही पूज्य होती है प्रतिमा नहीं. प्रतिमा का स्थान तभी बदला जा सकता है जब उसकी चल प्रतिष्ठा हुई हो. अन्यथा वहाँ किसी भी प्रकार की छेडछाड नहीं की जा सकती.भारत के अधिकांश शक्ति पीठ इसी परंपरा के हैं. कहा जाता है कि भगवान शंकर जब सती के मृत शरीर को लेकर जा रहे थे तो जहाँ-जहाँ उनके अंग गिरे वह सब स्थान शक्ति पीठ बन गये. उन स्थानों को उसी रूप में बिना छेड़छाड़ के पूजा जाता है. यद्यपि उसमें साधकों को और दर्शकों को बड़ी कठिनाई होती है तथापि इसके स्वरुप में कोई परिवर्तन नहीं किया गया. उदाहरण के लिये गोवाहाटी का कामाख्या शक्तिपीठ. मंदिर तो एक पर्वत शिखर पर है किन्तु जिस स्थान की पूजा की जाती वहाँ न तो कोई प्रतिमा है और न ही कोई प्रतीक. केवल भूमि की, स्थान की पूजा की जाती है. दूसरा उदाहरण है वैष्णो देवी. वहाँ पिंडियां एक संकरी गुफा में हैं. परन्तु उन्हें वहाँ से हटाकर कोई भव्य मंदिर नहीं बनाया गया. उनकी यथास्तिथि पूजा की जाती है. धारी देवी भी इसी प्रकार की एक शक्तिपीठ है. वहाँ कोई प्रतिमा नहीं है जिसका स्थान परिवर्तन किया जा सके. जिस शिलाखंड के प्रति लोगों के मन में आस्था है वह स्थानीय पर्वत से अभिन्न रूप से जुड़ा है. यदि उस शिलाखंड को हटाया गया या काटा गया तो इसे प्रतिमा का विखंडन माना जायेगा. अभी हाल ही में अयोध्या प्रकरण में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिंदू परंपरा में भूमि ही पूज्य होती है. इसलिए रामलला जहाँ विराजमान हैं वह स्थान पूज्य है. उनका स्थान परिवर्तन नहीं किया जा सकता. धर्म स्थल अधिनियम १९९१ के अनुसार १५ अगस्त १९४७ को जो पूजास्थल जिस स्तिथि में था वह उसी स्तिथि में रहेगा. उसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता. धारी देवी मंदिर के प्रमाण १८०५ से पहले के हैं. इसलिए धर्मस्थल अधिनियम १९९१ के अनुसार धारी देवी में किसी प्रकार की छेड़छाड एक संवैधानिक और धर्म शास्त्रीय अपराध माना जायेगा.
Monday, May 2, 2011
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इंसानियत का दुश्मन मारा गया. |
इंसानियत का दुश्मन ओसामा बिन लादेन मारा गया. यह तो होना ही था. अमेरिका के हाथों उसकी मौत ने एक फिर साबित कर दिया कि विश्व में जब भी कोई ताकत इंसानियत को भुलाकर अपनी चलाने की कोशिश करेगी तो उसका यही हश्र होगा. आश्चर्य है कि सद्दाम और ओसामा बिन लादेन जैसे लोगों के बनाने और मिटाने दोनों के पीछे अमेरिका का हाथ था, कारण भले ही अलग-अलग हों. अमेरिका ने ही इन लोगों को संरक्षण दिया था और अमेरिकी इशारे पर ही इनका अंत हुआ. आज यह सोचने के लिये पर्याप्त अवसर हैं कि इस प्रकार तानाशाहों का अंत होने से विश्व से तानाशाही अवश्य खत्म हो जायेगी पर किसी देश का इस प्रकार तानाशाह बन जाना भी कम खतरनाक नहीं. हमें उन धार्मिक लोगों से भी सबक सीखना होगा जो मज़हब को हथियार बनाकर मासूम लोगों के खून की नदियाँ बहाते हैं. ऐसे मज़हब जो इन तानाशाहों के पक्ष में खड़े होते हैं उन्हें खुदाई मज़हब या ईश्वरीय धर्म कहना मेरे हिसाब से एक गुनाह है. इसलिए धार्मिक दृष्टि से सोचने वालों को एक बार उस भारतीय सोच को समझना होगा जिसने अहिंसा और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की बात की थी. इसके साथ ही भारतियों भी आवश्यकता है अमेरिका से सबक लेने की जो दूसरों को शांति का पाठ पढ़ाता है पर खुद पर आंच आने पर किसी को नहीं बख्शता. लादेन यदि अमेरिका के लिये भस्मासुर की भूमिका में आ गया था तो अमेरिका ने भी दिखा दिया कि वह उसका बाप है. यदि वह उसे बना सकता है तो मिटा भी सकता है. दूसरी और हम हैं जो भारत के दिल पर हमला करने वाले अफजाल गुरु और कसाब की मेहमान नवाजी में लगे हैं. दुश्मन को पहचान कर ठिकाने लगाना हिंसा नहीं बहादुरी है और भारतीय जाने जाते हैं अपनी बहादुरी के लिये. यदि हम अपनी बहादुरी भुला बैठे हैं तो अमेरिका मौजूद है हमारा सबक बनने को....