Sunday, August 29, 2010

भगवा आतंक?

भगवा शब्द एक रंग का वाचक है, वह तो एक रंग है, सिर्फ रंग, जिसे उगते हुए सूरज में अथवा अग्नि की लपटों अथवा कुछ बहुत कम खिलने वाले फूलों में देखा जाता है। केसर से मिलता जुलता होने के कारण कुछ लोगों ने जहाँ इसे केसरिया कहाँ वही अंग्रेजी में इसे Saffron कहा जाने लगा। भारतीय धर्म, दर्षन, और सहित्य ने इसे पवित्रता और बोध (ज्ञान) के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया। लेकिन, कभी भी इस रंग को किसी जाति धर्म, मज़हब अथवा क्षेत्र से देश - विदेश में नही जोड़ा गया। जहाँ तक इस रंग के प्रयोग का प्रश्‍न है, सबसे पहले भारत में इसका उपयोग पावन प्रतीकों के रूप में जैसे, ध्वज, पताका, पूजा के वस्त्र और सन्यासियों के परिधान के लिये किया गया, लेकिन इसका उपयोग अन्य देशों में भी खुलकर किया जाता रहा। जैसे अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पश्‍चि‍मी देशों में इस रंग का उपयोग विभिन्न वस्तुओं की ओर, जन साधारण ध्यान आकर्षित करने के लिये किया गया। आज भी उन देशों में जहां भी कोई निर्माण कार्य चल रहा होता है अथवा सार्वजनिक आवागमन का जहाँ निषेध करना हो, वहाँ इस रंग का उपयोग होता है। दिल्ली अथवा देश के दूसरे तमाम मेट्रोपोलिटन शहरों में चल रहे किसी सार्वजनिक काम में लगे कर्मियों का जैकेट भगवा रंग का होता है। एक ऐसा रंग जो व्यक्ति के मन को सात्विक सृजन की प्रेरणा देता हो, ज्ञान और अभ्युदय का अहसास कराता हो, और उगते हुए सूर्य तथा जाज्वल्यमान मान ऊर्जा (अग्नि) का प्रतिनिधित्व करता हो, उसे आतंक से जोड़ना कितना उचित है, यह तो चिदम्बरम ही बता सकते हैं लेकिन यह स्पष्ट है कि मीडिया में इस शब्द के उछालने के पीछे कुछ बड़े खतरनाक किस्म के इरादे अवश्‍य हैं।

वर्षों पूर्व जब नक्सलवाड़ी के लोगों ने बंगाल प्रदेश की सत्तारूढ़ कांग्रेस के विरूद्ध हिंसक रुख अपनाया था तो उसे नक्सलवाद का नाम दिया गया। जब पंजाब में असंतोष भड़का और हिंसक रूप में सामने आया तो अलगाववाद के नाम से जाना गया। चीन से आये विदेशी विचार के समर्थकों को माओवादी कहा गया। समय-समय पर उठने वाले हिंसक आन्दोलनों को अलग-अलग नामों से जाना गया। विश्‍व के अनेक मुस्लिम देशों की हिंसक राजनीति ने इस्लामिक आतंकवाद की ख्याति अर्जित की, परन्तु जब देश के 25 प्रान्तों के 229 जनपद नक्सलवाद से जूझ रहें हों, आन्ध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में PWG अपना काम कर रही हो और भारत-नेपाल की सीमा पर माओवादी अपना जाल बुन रहे हों, दक्षिण के लिट्टे और केरल मुस्लिम लीग हिंसा और दारूल इस्लाम का बीज बो रही हों, आई. एस.आई. तथा सिमी जैसे संगठन देश के सामाजिक सौहार्द्ध को पलीता लगा रहे हों, तो अचानक भगवा-आतंक के राग की जरूरत कैसे पड़ गई, यह तो समझ के बाहर है। अल्पसंख्यक को हर तरह की सुविधा, अनुदान, विकास के अवसर यहाँ तक कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण, कानूनों में संशोधन करके भी जब चुनावी दृष्टि से उनका समर्थन नहीं जुट पाया तो अब रंग की राजनीति में उतर कर एक संप्रदाय विशेश के मत को अपने पक्ष में करने के लिए भगवा शब्द का सृजन देश के हित में कितना है यह तो देश बाद में बतायेगा लेकिन कहीं इसके पहले ही रंगों की यह लड़ाई पूरे देश की धरती को लाल न कर दे। जब लाल-सलाम इस देश से विदा हो रहा हो और धरती की हरियाली (समृद्धि) देश की धरती पर पनप रही हो तो एक रंग को देश विरोधी हिंसक प्रवृति से जोड़ना किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

चिदम्बरम को शायद पता हो कि संविधान सभा में भारत के राष्ट्रध्वज का भगवा रंग के होने का प्रस्ताव आया था। पहले पूरा झंडा भगवा रंग में होना निश्चित हुआ बाद में उसे सबसे ऊपर की पट्टी में रखा गया।

गृह मंत्री महोदय के मन में यदि इस रंग के साथ कुछ संगठनों के सम्बन्ध को लेकर कोई आग्रह है तो इसका खुलासा करना चाहिए। क्या है यह भगवा आतंक और कौन लोग हैं इसके पीछे ? जब तक वे इसे स्पष्ट नहीं करते तब तक वे देश को गुंमराह करने का अपराध करते रहेंगें।

यदि उनका इशारा उन हिन्दू संगठनों की और है जो समय-समय पर अपनी आस्था और अस्मिता के लिये संघर्ष करते है, तो यह कहने का मुझे अधिकार है कि उनमें से किसी संगठन ने न तो अब तक हिंसा का रास्ता अपनाया है और न ही देश के संविधान अथवा लोकतांत्रिक व्यवस्था से विद्रोह ही किया है। यदि वे राम जन्म भूमि, राम सेतू, गौरक्षा, गंगा रक्षा के लिये संगठित होकर संघर्ष करते हैं अथवा धर्मान्तरण, घुसपैठ, गौहत्या आदि प्रशासनिक शिथिलता के विरूद्ध क्षुब्द मन से सामूहिक आक्रोश व्यय करते है तो उसे आतंक कहना निहायत घटिया सोच के अलावा कुछ नहीं है।

चिदम्बरम् यदि राम जन्म भूमि मामले में न्यायालय के फैसले के बाद उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिये इस शब्द का उपयोग एक भूमिका के रूप में कर रहें हैं तो मैं कहूँगा कि यह उनकी एक भयंकर भूल होगी, जिसकी कीमत देश को चुकानी पड़ेगी। देश आज जिन स्थितियों से गुजर रहा है उसमें इस प्रकार के शब्द का प्रयोग वह भी देश के गृह मंत्री के द्वारा बड़ा खतरनाक साबित हो सकता है। चिदम्बरम जी एक योग्य व्यक्ति हैं। उन्हें शब्दों का प्रयोग करते समय बड़ी शालीनता और सजगता बरतनी चाहिए।

1 comments:

अनुनाद सिंह said...

अपनी नाकामी छिपाने के लिये चिदू जो कुछ करें, कम है। चिदू का कमाल तो देखिये कि पूरे देश में असुरक्षा का माहौल बना के रख दिया है। सेना को नपुंसक कर दिया है। कश्मीर में , मणिपुर में, केरल में और पूरे देश में राष्ट्रविरोधी छाये हुए हैं। कोई पत्रकार चिदू से उनकी उपलब्धियों के बारे में क्यों नहीं पूछता? उल्टा चोर कोतवाल को डांटे ????

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