मैं कुछ दिन पहले चेन्नई के एक परिवार में मेहमान था। वह घर समुद्र तट के निकट था। वहाँ मुझे एक वृक्ष दिखाया गया। वह एक वटवृक्ष था, छोटा सा। मुझसे पूछा, स्वामी जी पता है यह किसका वृक्ष है, मैंने कहा ठीक-ठीक समझ नहीं आ रहा। उन्होंने कहा यह वटवृक्ष है। आगे कहा कि इसकी विशेषता है कि यह अठारह वर्ष का है। मैंने कहा, यह कैसे हुआ कि अठारह वर्ष का वृक्ष और अठारह इंच का भी नहीं हुआ। जरूर आप इसे खाद-पानी नहीं देते होंगे, धूप में नहीं रखते होंगे। उन्होंने बताया यह सब करता हूँ, तभी तो हरा-भरा है। मैंने पूछा तब बढ़ता क्यों नहीं। बोले इसकी जड़ें काटता रहता हूँ।
इस देश में कहा गया है- यत्र धर्मो ततो जयः। इस देश की विजय, इस देश की श्री, इस देश का वैभव, इस देश का विकास, इस देश की संपन्नता और इस देश की समृद्धि यदि किसी एक चेतना में निहित है तो वह है धर्म। पंथ नहीं, सम्प्रदाय नहीं, मज़हब नहीं, केवल धर्म। वह धर्म जो एक माँ को, एक अनपढ़ महिला को वह दृष्टि देता है जो बड़े-बड़े दार्शनिक नहीं प्राप्त कर सके। जब अबोध बालक रोता है तो उसकी माँ उसे गोद में उठाकर चाँद दिखाती है, चमकते पिंड को देखकर बच्चा चुप हो जाता है और वापस माँ की ओर देखता है। अपने बच्चे के मूक प्रश्न का वह क्या उत्तर देती है, जानते हो, वह कहती है चंदा मामा है। चाहे कितनी ही दूर क्यों न हों हमसे, पर बेटा हमारे भैया हैं, तुम्हारे मामा हैं। हज़ारों मील दूर चमकते चाँद को नज़दीक खींच लाने की ताकत अगर किसी में है तो वह इस देश की धार्मिक आस्था में है जो नाग को भी दूध पिलाकर पर्यावरण की रक्षा करती है। जो तुलसी में, धरती में देवत्व की दृष्टि रखती हैं -
जिन्हें आंखें खुदा ने दीं वो पत्थर में खुदा देखें
जिनका दिल ही हो पत्थर सा भला पत्थर में वो क्या देखें
आज राष्ट्र की एकता के सूत्र न जाने कहाँ-2 तलाशे जाते हैं। लेकिन आस्था के उस सूत्र की अनदेखी कर दी जाती है जिसने हजारों साल इस देश को बाँधकर रखा। इतिहास साक्षी है कि जब-जब किसी सभ्यता पर बाहरी आक्रमण हुआ तो उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया पर भारत ने न जाने ऐसे कितने आक्रमणों को झेलकर अपने को ज़िंदा रखा। आज भी जब प्रयाग का या हरिद्वार का कुंभ होता है तो पूरा विश्व एकजुट होकर आस्था के धागे से बंधा, आस्था के समुद्र में गोते लगाकर, आस्था को पोषित करने खिंचा चला आता है।
कुंभ नगरी हरिद्वार से
आपका चिन्मयानंद
Sunday, January 24, 2010
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जिन्हें आंखें खुदा ने दीं वो पत्थर में खुदा देखें |
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